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बेटी के लिए खुद सीखी साइन लैंग्वेज, टीचर तैयार नहीं हुए तो खुद पढ़ाया

बिटिया का जन्म हुआ तो जिंदगी खुशियों से भर गई, लेकिन बड़ी हुई तो समझ में आया कि बिटिया सुन-बोल नहीं पा रही है। सामान्य बच्चों के स्कूल में एडमिशन मिला नहीं, और मां विशेष बच्चों के स्कूल में भेजकर बेटी के मन में इन्फीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स नहीं आने देना चाहती थी। कोई टीचर उसे घर आकर पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ। आखिरकार मां ने खुद साइन-लैंग्वेज सीखी और बिटिया की गुरू बन गईं।मां बनी गुरू तो बिटिया की पेंटिंग्स ने नेशनल लेवल पर जीते इनाम....


- ग्वालियर के ठाटीपुर में रहने वाली मंजू गौर ने मांओं के सामने एक अनूठा आदर्श पेश किया है। मंजू की बेटी खुशबू जन्म से ही बोलने और सुनने में समर्थ नहीं है, सामान्य बच्चों से अलग खुशबू अपनी हर बात पेंटिंग में बयां करती है। आज 15 साल की खुशबू नेशनल लेवल पर पेंटिंग में सामान्य बच्चों के साथ मुकाबला कर ढेरों इनाम जीत चुकी है।

- खुशबू को सामान्य स्कूल में एडमिशन मिला नहीं, और मां नहीं चाहती थी कि डिसेबल्ड बच्चों के साथ रह कर खुशबू के मन में किसी तरह का इन्फीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स पनपे।- खुशबू जब 3 साल की थी तब फैमिली को पता चला थे कि कुदरत ने उसे सुनने और बेलने की ताकत नहीं दी है। कई जगह इलाज के बाद भी कोई सॉल्यूशन नहीं मिला, लेकिन मां मंजू ने हिम्मत नहीं हारी।
- मंजू ने पहले बेटी को घर पर ही पढ़ने के लिए टीचर तलाशा, लेकिन जब सभी टीचर्स ने मना कर दिया। आखिरकार बेटी की परेशानी को समझने और दूर करने के लिए मंजू ने खुद साइन लैंग्वेज सीखी। अब मां को बेटी परेशानियां और भावनाएं समझ में आने लगीं। 
- मां की यह मेहनत रंग लाने लगी थी थी, बेटी में अपनी बात और जज्बात को जाहिर करने का पेंटिंग के रुप में एक और जरिया मां ने दिला दिया। 
- मां की की मेहनत को तब मुकाम मिला जब खुशबू को पेंटिंग्स के लिए बालश्री नेशनल अवॉर्ड के लिए चुना गया। नेशनल कैंप में मंजू की बेटी ने देशभर के सामान्य बच्चों के साथ हुए कॉम्पटीशन में पेंटिंग बनाई और सम्मान पाया।

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