जिन कुंओं में हुए न्यूक्लियर टेस्ट, कोडवर्ड था 'ताजमहल' ताे किसी का 'कुंभकर्ण'
राजस्थान के पोकरण में 11 और 13 मई 1998 को भारत की ओर से पांच न्यूक्लियर टेस्ट किए गए थे। इस मिशन को पूरी तरह सीक्रेट रखने के लिए इससे जुड़े लोगों, बमों और जगहों तक के नाम के लिए कोडवर्ड का इस्तेमाल किया गया था। जिन कुंओं में टेस्ट हुआ था, उनका नाम व्हाइट हाउस, ताजमहल और कुंभकर्ण रखा गया था। कुछ घंटे पहले खाली करवा दिया गया था गांव...
- न्यूक्लियर टेस्ट के लिए देश के पोकरण के खेतोलाई गांव के पास फील्ड फायरिंग रेंज को चुना गया था।
- टेस्ट की कई महीनों तक तैयारी के दौरान फील्ड फायरिंग रेंज में विदेशी सैटेलाइट्स के भारतीय सीमा में होने के दौरान गेम एक्टीविटीज की जातीं। इसके बाद खुदाई का काम और जरूरी सामान की आवाजाही होती। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा।
- टेस्ट की तैयारियों को लेकर दिन-रात मेहनत कर रहे जवानों में से एक को उस दौरान बिच्छू ने डंक मार दिया था, लेकिन उसने परवाह किए बिना अपना काम जारी रखा।
- इस सीक्रेट मिशन से जुड़े इंडियन साइंटिस्ट भी टेस्ट को लेकर कई महीनों तक जुटे रहे। यहां तक कि फील्ड फायरिंग रेंज में पहुंचने वे सेना की ड्रेस पहनकर सेना के ही ट्रकों में सवार होकर ही जाते थे।
- टेस्ट से पहले उनके इलाके में सेना की हलचल तेज हो गई थीं। टेस्ट से कुछ घंटे पहले गांव खाली करवा दिया गया था और दीवारों और पेड़ों की ओट में खड़े रहने की हिदायत सेना के अफसरों ने दी थी।
जिन कुओं में हुआ था न्यूक्लियर टेस्ट, किसी का नाम 'ताजमहल' ताे किसी का 'कुंभकर्ण'
- सेना और डिफेंस एक्सपर्ट्स ने ‘ऑपरेशन शक्ति’ का कोड वर्ड 'लाफिंग बुद्धा' रखा था। उसके अल्फा, ब्रावो, चार्ली जैसे कोड डाॅ. एपीजे कलाम के अलावा किसी को भी नहीं पता थे।
- ऑपरेशन की शुरुआत मुंबई के भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेंटर में बनाए गए न्यूक्लियर बमों को इंडियन एयरफोर्स के कार्गो प्लेन में ले जाने के साथ हुई। जिन्हें ‘सेव की पेटियां’ कोडवर्ड दिया गया।
- 1 मई को सुबह 3 बजे मुम्बई के सांताक्रुज एयरपोर्ट से जैसलमेर तक का फ्लाइट से फिर जैसलमेर से पोकरण तक आर्मी के ट्रकों में लकड़ी के बक्सों में भरकर ‘सेव की पेटियां’ पहुंचाई गईं।
- ट्रकों के कारवां में ‘सेव की पेटियां’ खेतोलाई गांव में बनाए गए ‘डीयर पार्क’ (टेस्ट कंट्रोल रूम) के प्रेयर हॉल तक पहुंची, कमान मेजर जनरल पृथ्वीराज (कलाम) के हाथ आ गई।
- महीनों से काम कर रहे कलाम ने अल्फा कम्पनी की मदद से पांच गहरे कुएं खुदवाए थे। इनमें से 200 मीटर गहरे जिस कुएं में हाइड्रोजन बम का टेस्ट किया गया, उसे ‘व्हाइट हाउस’ जबकि, फिसन बम के कुएं को ‘ताजमहल’ और पहले सबकिलोटन बम वाले कुएं को ‘कुम्भकर्ण’ का नाम दिया गया। बाकी दो कुएं एनटी-1 और एनटी-2 दूसरे दिन किए गए टेस्ट के लिए रिजर्व रखे गए थे।
- महीनों से काम कर रहे कलाम ने अल्फा कम्पनी की मदद से पांच गहरे कुएं खुदवाए थे। इनमें से 200 मीटर गहरे जिस कुएं में हाइड्रोजन बम का टेस्ट किया गया, उसे ‘व्हाइट हाउस’ जबकि, फिसन बम के कुएं को ‘ताजमहल’ और पहले सबकिलोटन बम वाले कुएं को ‘कुम्भकर्ण’ का नाम दिया गया। बाकी दो कुएं एनटी-1 और एनटी-2 दूसरे दिन किए गए टेस्ट के लिए रिजर्व रखे गए थे।
- टेस्ट कामयाब होने के बाद फोन कर तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को 'लाफिंग बुद्धा' (बुद्ध मुस्कराया) कहकर कोड मैसेज दिया गया।
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